कैसी गढ़ी गई युधिष्ठिर को लेकर मिथक अवधारणाएं



Updated: November 25, 2020 10:50
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डा. महेन्दर बता रहे हैं कि भारतीय मूल के लेखक आदित्य सतसंगी द्वारा लिखित पुस्तक ,”Samrat Yudhishthir:The Greatest Emperor” धर्मराज युधिष्ठिर को लेकर गढ़ी गई कई मिथक अवधारणाओं को दूर कर इस ऐतिहासिक व्यक्तितव का समग्र मूल्यांकन करती है।

वैश्विक महामारी कोरोना के कारण जब सरकार ने भारत में भी “लॉकडाउन” किया था उस समय घर में बैठे बैठे समय कैसे व्यतीत हो इसकी व्यवस्था भी सरकार ने अपनी तरफ से की थी। दूरदर्शन पर अनेक कार्यक्रम चलाये गए, और सबसे अच्छा प्रयोग था रामायण और महाभारत को पुनः टेलीकास्ट करना। जिसका लाभ सम्पूर्ण देश ने लिया भी। उन दिनों प्रतिदिन सोशल मीडिया रामायण, महाभारत को लेकर लोगों के अनुभव से भरी रहती थी। लोग सपरिवार इन दोनों कालजयी धारावाहिकों को देख रहे थे। यहाँ तक की रामायण महाभारत धारावाहिकों में अभिनय करने वाले पात्रों के इन धारावाहिकों को देखते हुए वीडियो भी वायरल हुए। सोशल साइट्स पर ही अनेक आलेख रामायण महाभारत को लेकर आये और आते रहते हैं। कुछ ही दिन पहले मुझे भी सोशल मीडिया पर महाभारत काल में हुए “महाराज युधिष्ठिर” के बारे में अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लेखक आदित्य सतसंगी द्वारा लिखित पुस्तक के बारे में पता चला जिसका नाम है,”Samrat Yudhishthir:The Greatest Emperor“। यह पुस्तक अमेरिका में ही प्रकाशित हुई है और हाथों हाथ बिक रही है।

इस पुस्तक को पढ़ने से पूर्व महाभारत और विशेषकर युधिष्ठिर महाराज को लेकर मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण कुछ अलग था। कारण एक ही था -“मैंने महाभारत ग्रंथ स्वयं नहीं पढ़ा था और जो कुछ भी जानकारी महाभारत को लेकर थी वह बी. आर. चोपड़ा जी के महाभारत और रामानंद सागर जी के श्रीकृष्ण धारावाहिक को देखने अथवा महाभारत पर आधारित कुछ पुस्तकों और उपन्यासों पर आधारित थी“। आदित्य सतसंगी की इस पुस्तक को पढ़ने से पूर्व युधिष्ठिर महाराज को लेकर जो जानकारी मुझे थी उसका विवरण यदि करूं तो वह कुछ इस प्रकार का था- युधिष्ठिर पाण्डु और कुंती के सबसे बड़े पुत्र थे, इसलिए पांचों पांडवों के बड़े भाई थे। हमेशा सोच विचार में डूबे रहते थे। काफी निर्बल थे, कन्फ्यूज थे, जुआ खेलने के चक्कर में अपना सारा राज्य गंवा दिया, अपने भाई और पत्नी को भी हरा दिया, जिसके कारण वन वन भटकना पड़ा। बाद में जब महाभारत का युद्ध हुआ तो भी डर डर के युद्ध लड़ा। वनवास में यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाईयों को पुनः जीवित करवाया, और लोग उन्हें धर्मराज कहते थे या हैं, इसके साथ ही थोड़ी बहुत जानकारी और थी। साथ ही एक जानकारी आधुनिक परिवेश के कारण और थी कि महाभारत और उसके पात्र काल्पनिक हैं, इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है (मैं इस बात से सहमत नहीं था न हूँ, परन्तु इसका प्रतिऊत्तर मेरे पास नहीं था, कारण बता चुका हूँ मैंने महाभारत अध्ययन नहीं किया था..अर्थात सारी जानकारी दूसरों की बातों पर आधारित थी)।

परन्तु “Samrat Yudhishthir:The Greatest Emperor” पुस्तक के Preface की शुरूआती पंक्तियाँ पढ़ी तो मेरे मस्तिष्क में उथल पुथल हुई, क्योंकि ऐसा ही कुछ हम सब पढ़ना चाहते हैं परन्तु पुस्तकों में मिलता नहीं। वो पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार हैं,”Mahabharat is the most studied great composition of Vyasadeva. The Western & Indian Indologists have been writing long commentaries creating fake news and commentaries which have long destroyed the identity of all Indians. Most Indians have been made to believe in fake narratives on Mahabharata that affect their faith. This book contains many authoritative versions of the stories from the point of view of Vyasadeva. Readers will love the wisdom, characters and their true identity.”

पुस्तक के Preface से आगे चलकर जब introduction पढ़ना शुरू किया तो कुछ ऐसा मिला,” It has almost become a fashion to comment on Mahabharat without understanding the mood of Vyasadeva, the original compiler of Mahabharat. Nor do most people understand Ganesh, the original scribe of Mahabharat. ……………Most importantly they considered Vyasadeva as some ordinary author. When you consider him a mythological figure then everything in this world is fake. However, every single geographical description of earth in Mahabharat is real. The names of land masses, many cities and many regions have the same names even today. Where is all this fake news on Mahabharat originating from? From the vestiges of Romans, Greeks, Middle Eastern Historians, Christian Missionaries, Faith based Cabals and Islamic academicians has come some ridiculous brave attempts to make Indians not believe in Mahabharat. The mythology brigade has a new found friend in the left that wants to undermine everything else to spread their neo ideologies.” आगे भी बहुत कुछ लिखा हुआ है जिसे पढ़कर स्वयं को सनातनी कहने वाला हर भारतीय यही कहेगा कि,” ये मेरे मनोभाव हैं”

इस पुस्तक का Foreword -Antonia Filmer, Professor Madhav Das Nalapat, और भारतीय मूल के अमेरिकन लेखक Sharad Mohan जैसे दिग्गजों ने लिखा है। आगे महृषि वेदव्यास के बारे में लिखा हुआ है जिसको पढ़ने के बाद ध्यान आया कि महाभारत की रचना महृषि वेदव्यास नहीं करवाई थी। तुंरत मुझे एक संस्कृत वाक्य ध्यान आया जो मैं बचपन से सुनता अथवा पढ़ता आया हूँ “व्यासोच्छिष्टं जगत् सर्वम्” जिसका अर्थ कदाचित ऐसा होगा -इस सृष्टि का सम्पूर्ण ज्ञान महृषि वेदव्यास की जूठन है और “धर्मो विवर्धति युधिष्ठिरकीर्तनेन………।

इसके बाद अनेक प्रश्न मेरे मन में उठने लगे जैसे यदि सारा ज्ञान वेदव्यास जी की जूठन है तो फिर महाभारत काल्पनिक कैसे हो सकता है? जो वेदव्यास जी भगवान गणेश के हाथों महाभारत लिखवाएं हैं वो काल्पनिक कैसे हो सकते हैं? वेदव्यास जी का व्यक्तित्व कैसा रहा होगा? सनातन अथवा हिन्दू परम्परा को मानने वाले हम लोग तो हमेशा सुनते रहते हैं की वेदव्यास अष्ट चिरंजीवियों में एक हैं फिर उनकी रचना काल्पनिक अथवा मिथ्या कैसे हो सकती है। जिन युधिष्ठिर महाराज के नाम का स्मरण करने से अथवा कीर्तन करने से धर्म की वृद्धि होती है वे युधिष्ठिर महाराज की छवि इतनी कमजोर क्यों दिखाई गयी है? ऐसे बहुत सारे प्रश्न मन में उठने लगे परन्तु फिर मैंने पुस्तक पढ़ने के लिए मन और ध्यान एकाग्रित किया। Introduction की अंतिम पंक्तियाँ पाठक को सोचने पर विवश करेंगी, “Vyasadeva is the authority on all Vedic histories and scriptures. Minimizing the position of Vyasadeva is the beginning of mythology.”

आगे लेखक ने अपनी इस पुस्तक में “Structure of Mahabharat” भी समझाया है। जो जानना सनातन अनुयायियों के अत्यंत आवश्यक है। पुस्तक के मुख्य अध्यायों में प्रथम अध्याय पढ़ते ही युधिष्ठिर महाराज को लेकर मेरे मन जो छवि थी जिसका विवरण मैंने पूर्व में दिया है वह पूर्णतः ध्वस्त हो गई। मेरे मस्तिष्क में एक ही प्रश्न घूम रहा था “क्या ये सत्य है?” तो आज तक मैं किस युधिष्ठिर के बारे में जानता था? इस बात को आधार मिलता है लेखक की उस बात से जिसमें उन्होंने लिखा है कि वे महाभारत के संस्कृत स्वरूप को आधार मानकर सब लिख रहे हैं और ये कोई फिक्शन नहीं है। युधिष्ठिर महाराज सम्राट क्यों कहलाये, धर्मराज आज तक क्यों कहलाते हैं? आखिर दुर्योधन की ईर्ष्या का कारण क्या था? जबकि वह स्वयं धृतराष्ट्र का पुत्र और युवराज था लाक्षागृह में तो उसने अपनी तरफ से पांडवों को मार ही दिया था। परन्तु युधिष्ठिर के राजसूयज्ञ के बाद एकाएक ऐसा क्या हुआ की दुर्योधन को द्युत का षड्यंत्र रचना पड़ा ? विद्वान लोग इन प्रश्नों के उत्तर देते हैं अथवा दे सकते हैं। परन्तु आज तक मैंने जो कुछ भी सुना है उसके अनुसार धारावाहिक महाभारत से जो नैरेटिव बना है उसी के हिसाब से उत्तर मिलते हैं।

लेखक ने अपनी तरफ से कुछ न लिखते हुए महृषि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में से धृतराष्ट्र और दुर्योधन संवाद के माध्यम से युधिष्ठिर महाराज को लेकर फैले मिथ/भ्रम/अज्ञान को नष्ट करने का उत्कृष्ट प्रयास किया है। दुर्योधन अपने मुख से बोलता है कि वह युधिष्ठिर से क्यों ईर्ष्या करता है, और दुर्योधन की इसी ईर्ष्या में छुपा है युधिष्ठिर महाराज का महान और वैभवशाली व्यक्तित्व जो कदाचित जिसने स्वयं महाभारत अध्ययन मनोयोग से किया होगा केवल उसको ही पता होगा अन्यथा सब मेरे जैसे ही भ्रम में जीने वाले होंगे। द्युत सभा के बाद युधिष्ठिर को लेकर बहुत प्रश्न किये जाते हैं कि उनके कारण पांडवों का राज्य गया, द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास हुआ और भी बहुत कुछ कहा जाता है। परन्तु लेखक ने अपनी पुस्तक में धारावाहिक देखकर प्रश्न पूछने वालों को महाभारत में हुए भीम युधिष्ठिर संवाद और द्रौपदी युधिष्ठिर संवाद के माध्यम से अनेक प्रश्नों और सनातन विरोधियों द्वारा फैलाये गए मिथकों का पर्दाफास किया है। कम शब्दों में लिखूं तो पुस्तक का प्रथम अध्याय,”Did Yudhishthir love Gambling?” पढ़कर पाठक युधिष्ठिर महाराज का चित्र घर में लगाने के लिए बाजार में ढूढ़ने लगेंगे। पुस्तक में युधिष्ठिर और महृषि वेदव्यास की भेंट/संवाद का भी वर्णन है। अब प्रश्न ये उठता है कि जिन युधिष्ठिर महाराज के वैभव का वर्णन स्वयं दुर्योधन करता है, जिन युधिष्ठिर महाराज से भेंट करने स्वयं वेदों के रचियता और जिनकी जूठन सम्पूर्ण ज्ञान है वे महृषि वेदव्यास स्वयं आते थे, वे युधिष्ठिर महाराज निर्बल, कन्फ्यूज कैसे हो सकते हैं? युधिष्ठिर राज्य करने के योग्य नहीं थे? और उनके बारे में जो जो मिथक फैलाये गए हैं वो सब सत्य कैसे हो सकते हैं? क्या सनातन को मानने वाले लोग महृषि वेदव्यास जी को भी नकारते हैं? लेखक ने यह निर्णय पाठकों पर छोड़ दिया है जो अपने आप में एक उत्कृष्ट उद्यम है।

इस पुस्तक में लेखक ने महाभारत और उसकी घटनाओं को लेकर जो विवाद निर्मित किये गए हैं उन सबका वेदव्यास जी के हवाले से विध्वंश करने का प्रयास किया है। जैसे द्रौपदी के पांच पति क्यों थे? एकलव्य द्वारा द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा रूप में समर्पण भाव से अपना अंगूठा देने की घटना को लेकर जो बबाल किया जाता है, उस पुरे प्रकरण को लेखक महाभारत के माध्यम से ही शांत करने का उद्यम किया है, Eklavya & Dronacharya अध्याय को पढ़कर मुझे पता चला कि द्रोणाचार्य ने ही बाद में एकलव्य को उँगलियों के माध्यम से धनुर्विद्या में निपुण बनाया था जो मेरे जैसे पाठक को पहले पता नहीं था। महाभारत युद्ध हुआ ये सबको पता है परन्तु उस युद्ध में कितने लोग मारे गए थे? युद्ध का स्वरूप कैसा था? इस पुस्तक के माध्यम से जानना अपने आप में पाठक को चिंतन यात्रा पर ले जा सकता है।

पुस्तक का एक और अध्याय “Kanik’s Political Advice to Dhritarashtra” इस पुस्तक का छुपा हुआ रत्न है जो आधुनिक सनातनियों को पढ़ना नितांत आवश्यक है जिससे पाठकों को सनातन विरोधियों की धूर्त चालों को समझने में सहायता मिलेगी।

पांडवों की अंतिम यात्रा को लेकर भी विविध मत हैं, लेखक ने जन्मजय और वैशम्पायन संवाद के माध्यम से सभी मिथकों और प्रश्नों पर पूर्ण विराम लगाने का यत्न किया है। पुस्तक में युग गणना के साथ साथ इंद्रप्रस्थ के वास्तविक इतिहास का संक्षिप्त वर्णन किया गया है जो पाठकों को महाभारत की सत्यता के प्रमाण देने का कार्य करता है। साथ ही महृषि मार्कण्डेय को लेकर जो विवरण किया गया है वो भी अनूठा है। जो श्रीमद भागवत पुराण के पाठक कदाचित जानते होंगे।

298 पृष्ठों की यह पुस्तक गागर में सागर भरी हुई है। संस्कृत में लिखे महाभारत ग्रंथ के अन्य भाषाओं में हुए अनुवाद अथवा उस अनुवाद के अनुवाद के आधार पर आधुनिक विशेषकर पश्चिमी इतिहासकारों और इंडोलॉजिस्टों द्वारा महाभारत और युधिष्ठिर महाराज को लेकर फैलाये गए मिथकों और भ्रम को यह पुस्तक पूर्णतया ध्वस्त करती है। साथ ही साथ भारत के गौरवशाली इतिहास और युधिष्ठिर जैसे विराट इतिहासपुरुष के प्रति सम्म्मान और उनसे प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित करती है और अपने शास्त्रों का स्वयं अध्ययन करने के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। यदि भारत के संततियां इस प्रकार का वर्णन बाल्यकाल में पढ़ने और सुनने लगेंगे तो कोई विदेशी अथवा जिनकी आस्था का केंद्र विदेश है, भारत के गौरवशाली इतिहास को मिथक या माइथोलॉजी अथवा काल्पनिक कहने का साहस नहीं कर सकता।

लेखक को इस पुस्तक को भारतीय भाषाओँ में प्रकाशित कराना चाहिए ताकि मेरे जैसे अनेक पाठकों का भ्रम निवारण हो सके।

(लेखक रसायन शास्त्र में पीएचडी और निजी व्यवसायी हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

 

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